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क्या बीजेपी मान गयी है अरविन्द केजरीवाल का लोहा ?

Deepak Ramteke
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दिल्ली का चुनाव एक शतरंज की बिसात की तरह लग रहा है जहाँ आम आदमी पार्टी और बीजेपी एक दुसरे की चालो को दिन प्रतिदिन मात देते हुए नज़र आ रहे रहे है। किरण बेदी के बीजेपी में प्रवेश के बाद फिलहाल बाज़ी बराबरी पर है लेकिन अब हर चाल संभल कर खेली जायेगी। किरन बेदी वह वजीर है जिसे कई प्यादे कुर्बान कर बीजेपी ने हासिल किया. पर क्या यह ७० खाने चलने वाला वजीर बाज़ी मार जायेगा यह देखना काफी दिलचस्प रहेगा।

यह तो मानना ही पड़ेगा की किरण बेदी को लाने का एक मात्र कारण है अरविन्द केजरीवाल. बीजेपी के प्रवक्ता पिछले कई दिनों से यह कहते नहीं थकते थे की जिस तरह पिछले चार विधानसभा चुनाव उन्होंने बिना मुख्य्मंत्री का चेहरा बताये जीते है उसी तरह वो दिल्ली का चुनाव भी लड़ेंगे और सिर्फ लड़ेंगे ही नहीं बल्कि भारी बहुमत से जीतेंगेभी। फिर एकाएक ऐसा क्या हुआ की किरणजी की जरूरत पड गयी ? इस कठिन से प्रश्न का सरल सा जवाब है- अरविन्द केजरीवाल।

बदलाव की राजनीती शुरू हो गयी है दोस्तों । चार विधानसभा चुनाओ के बाद बीजेपी को अपनी रणनीति में बदलाव लाना पड़ा। उन्हें चेहरा देने पर मजबूर होना पड़ा। अरविन्द केजरीवाल को सिर्फ मोदी के नाम से नहीं हराया जा सकता यह बीजेपी जान चुकी है। आपने शुरुवातसे बीजेपी को इस मुद्दे पर जकड रखा था। भागते बिजली मीटरोने साँस लेना और भी मुशील कर दिया। किरण बेदी को लाकर उनके सीने का बोझ कुछ कम जरूर हुआ है।

जहा एक और किरणजी का प्रवेश इस चुनाव को एक नया मोड़ दे रहा है वही आम आदमी के मन में कुछ सवालभी उत्पन्न कर रहा है जिसके बारे में बीजेपी को सोचना होगा।

क्या किरण बेदी को लानेसे यह साफ़ नहीं होता की बीजेपी में अरविन्द केजरीवाल की साफ़ छवि को टक्कर देने वाले नेताओ की कमी है ?

क्या बीजेपी दिल्ली में अपनी जीत को लेकर निश्चिंत नहीं है जैसा की वो दिखाते है ?

क्या इसी कारनवश किरण बेदी दिल्ली चुनाव की कमान संभालेगी ताकि बुरे प्रदर्शन का जिम्मेदार विरोधी मोदीजी को ना ठहराये?

क्या किरण बेदी केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड़ेगी ? और उनके पराजय की स्थिति में क्या बीजेपी फिर भी उन्हें CM बनाने की सोचेंगी?

अंततः क्या बीजेपी अरविन्द केजरीवाल का लोहा मान चुकी है?

आज के राजनैतिक माहोल में विरोधियों की प्रशंसा दुर्लभ है और इन प्रश्नो का जवाब नेताओ के लिए उतना ही कठिन. एैतिहासिक फिल्म शोले के कुछ संवाद यहाँ याद आ रहा है जहा ठाकुर साहब कहते है की “लोहा लोहे को काटता है”।

“लोहा गरम है” बस यह देखना बाकि है की पहला हतोड़ा कोण मारता है।

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